तीन बहनें (The Three Sisters)


एक बार की बात है, एक गाँव में एक औरत रहती थी. उसका नाम दुग्बा था और उसकी तीन बेटियां थीं - कुमारी, सुलोचना और कुमुद. दुग्बा का पति जीवित नहीं था इसलिए अपनी तीनों बेटियों की परवरिश वह अकेले और बहुत ही अच्छी तरह से करती थी. उसकी तीनों बेटियां अपने जन्म से ही सुन्दर थीं. समय के साथ-साथ जब तीनों बड़ी हुईं, तो परियों के समान सुन्दर हो गईं और उनकी माँ बूढ़ी...! बुढ़ापे के कारण दुग्बा को अपनी बेटियों के विवाह की चिंता तो हुई किन्तु उनकी सुन्दरता के कारण उसे उनके लिए योग्य वर बिना किसी अत्यधिक परेशानी के प्राप्त हो गए. अब दुग्बा की तीनों बेटियां विवाह करके अपने-अपने ससुराल चली गईं.

कई वर्ष बीत गए और बुढ़ापे के कारण दुग्बा यदा-कदा बीमार भी रहने लगी. पहले तो वह अपने हाथ-पाँव चला भी लेती थी लेकिन अब उसका शरीर जवाब देने लगा था. दुग्बा ने सोचा कि मृत्युशैया पर लेटने से पहले एक अंतिम बार अपनी सभी पुत्रियों का मुख देख ले. इस करके उसने एक सुनहरी, बोलने वाली गिलहरी को, जिसका नाम भी सुनहरी था, को अपने पास बुलाया और कहा, “देखो, सुनहरी..! मुझे प्रतीत होता है जैसे मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष बचे हैं."
सुनहरी बोली, "अरे दुग्बा! ऐसा क्यों सोचती हो..? अभी तो तुम कई वर्ष और जियोगी."
दुग्बा मुस्कुराते हुए बोली, "सुनहरी मृत्यु तो शाश्वत सत्य है यह कब, कहाँ और किसे आ जाये क्या पता? परन्तु मेरी चिंता यह नहीं है.
सुनहरी - तो फिर...!
दुग्बा - सुनहरी मैं चाहती हूँ कि अपनी मृत्यु से पहले एक आखिरी बार अपनी सभी पुत्रियों को एक साथ देखूं अन्यथा शायद मेरी आत्मा को शांति न मिले. और साथ ही यदि वे मेरे अंतिम क्षणों में मेरी कुछ सेवा भी कर सकें तो मुझे लगेगा जैसे मेरा पृथ्वीलोक में जन्म सार्थक हो गया.
सुनहरी को दुग्बा की स्थिति पर बहुत दया आई और बोली, “दुग्बा तुमने एकदम सही सोचा है. तुम मुझे बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकती हूँ?”

दुग्बा – सुनहरी! तुम तो मेरी दशा देख ही रही हो... मैं तो खड़ी भी मुश्किल से हो पाती हूँ. इसलिए ऐसी दशा में मेरा स्वयं अपनी पुत्रियों के घर जाना संभव नहीं है, अतः मैं चाहती थी कि अगर तुम उन तीनों को मेरा यह सन्देश देती तो मुझे बहुत ख़ुशी होती.
सुनहरी – हाँ... हाँ... दुग्बा. मैं अभी तुम्हारी बेटियों के घरों की ओर प्रस्थान करती हूँ और उन्हें तुम्हारा सन्देश देती हूँ. इतना कहकर सुनहरी वहां से चली गई...

सबसे पहले वह दुग्बा की सबसे बड़ी बेटी कुमुद के पास पहुंची. कुमुद घर के बर्तन धो रही थी. जैसे ही कुमुद ने सुनहरी उसके सामने खड़ा देखा तो वह बहुत खुश हो गई. बर्तन धोते-धोते ही वह सुनहरी से बोली - अरे सुनहरी! तुम कब आई.

सुनहरी - बस अभी पहुंची हूँ. मैं यहाँ तुम्हारी माँ का सन्देश लेकर आई हूँ. कुमुद..! तुम्हारी माँ दुग्बा बहुत बीमार है और वह तुम्हे याद कर रही है. वह चाहती है कि उसके जीवन के अंतिम क्षणों में तुम तीनों बहनों को एक-साथ देखे और तुम्हें अपनी थोड़ी-सी सेवा करने का मौका दे.


सुनहरी की बात सुनकर कुमुद बोली - सुनहरी..! मैं बस अभी तुम्हारे साथ चलती हूँ तुम थोड़ी देर के लिए मेरी प्रतीक्षा करो मैं बस इन दो-चार बर्तन के ढक्कनों को धो लेती हूँ...! सुनहरी को कुमुद की बात सुनकर गुस्सा आ गया. उसने सोचा कि जिस माँ ने उसके बचपन में उसकी छोटी-सी आह पर अपने सारे काम-काज छोड़कर उसे संभाला आज वह अपनी माँ की बीमारी और बुढ़ापे में ढक्कनो को धोने के काम को अधिक महत्व दे रही है. सुनहरी गुस्से से बोली – “कुमुद, जा तू सदा ढक्कनों में ही रहेगी.”


सुनहरी के इतना कहते ही कुमुद के आस-पास पड़े ढक्कन हवा में उछले और उसके सर और पांव की तरफ आ गए. कुमुद उनमें दब गई और सदा-सदा के लिए एक कछुआ बन गई.
इसके बाद वह दूसरी बहन सुलोचना के पास गई और वही शब्द वहां दोहराए. सुलोचना कुछ बुनाई का काम कर रही थी. और जब उसने सुनहरी के मुंह से अपनी माँ की स्थिति के बारे में सुना तो वह बोली – “बस, थोड़ी-सी ही बुनाई बाकी है, इसे ख़त्म कर लूँ फिर मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ.

गिलहरी एक बार फिर गुस्से से लाल-पिली हो गई और बोली –“सुलोचना तुम भी अपनी बहन कुमुद के समान हो... तुम्हें अपनी बुनाई ख़त्म करनी है न... ‘जा, तू हमेशा बुनाई ही करती रहेगी’. और बस सुनहरी गिलहरी के इतना कहते ही एक बार फिर एक चमत्कार हुआ और देखते-ही-देखते सुलोचना एक मकड़ी में परिवर्तित हो गई और तब से अब तक सिर्फ जाले ही बुन रही है.

अब बारी थी आखिरी घर की जो था – कुमारी का. जैसे ही सुनहरी कुमारी के समीप पहुंची तो उनसे एकबार फिर वही बात दोहरायी. कुमारी अपनी रोटियां सेंक रही थी. जैसे ही उसने सुनहरी से अपनी माँ की दुर्दशा सुनी तो वह आटे को उसी दशा में छोड़कर वहां से उठी और बोली – अरे..! मेरी माँ बीमार है. उसके पास तो उसकी सेवा करने वाला भी कोई नहीं होगा. इसलिए मुझे जल्द ही उसके पास पहुँचना होगा. इतना कहते-कहते वह बिना अपने हाथ धोए चार से भागी और सीधा अपनी माँ के पास पहुंची.

गिलहरी ने जब कुमारी को इस प्रकार देखा तो उसके मुख से निकला – “कुमारी... तू लोगों के जीवन में सदैव मिठास ही भरेगी और तेरे जीवन में कभी दुःख नहीं आएगा...”
सुनहरी के इतना कहने के बाद कुमारी को कुछ हुआ तो नहीं लेकिन जब तक कुमारी जीवित रही उसे किसी भी चीज़ का अभाव नहीं रहा और जब उसकी मृत्यु हुई तो वह एक सुन्दर मधुमक्खी बन गई. इस तरह से वह लोगों के लिए मीठा शहद तैयार करने वाली मधुमक्खी बन गई.

तो दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी हमें ज़ुरूर बताइए. आपके अच्छे कॉमेंट्स, आपकी राय और आपके विचारों का हम स्वागत करते हैं. आप अपनी शिकायतें अथवा सुझाव आदि हमें baalpaper@outlook.in पर भेज सकते हैं.