मच्छर चालीसा (Machchhar Chalisa)

शायद आपने हनुमान चालीसा अवश्य ही पढ़ा होगा। किन्तु, यदि नहीं पढ़ा है तो मेरा आपसे अनुरोध है कि इसको

पढ़ने से पूर्व ॥श्री हनुमान चालीसा॥ ज़रूर पढ़ लें।

केवल और केवल, तभी आप इस "मच्छर चालीसा" का सम्पूर्ण आनंद ले सकेंगे।

+ मच्छर चालीसा +

जय मच्छर भगवान उजागर। जय अनगिनत रोगों के सागर॥
नगरदूत अतुलित बलधामा। तुमसे जीत न पाए गामा॥
गुप्त रूप धर के आ जाते। भीम रूप धर के खा जाते॥
मधुर-मधुर खुजलाहट आए। सारी देह लाल पड़ जाए॥

वैद्य हकीमों के रखवाले। घर-घर में तुम रहने वाले॥
नित रोगिन को देखन जाए। भरी जेब, रूपिया सरकाए॥

मलेरिया के तुम हो दाता। तुम खटमल के छोटे भ्राता॥
गाँव नगर सब तुमको प्यारा। एक छत्र है राज तुम्हारा॥

गली बाजार सबै घर माही। काट खाए तो अचरज नाही॥
नाम तुम्हारे बजे है डंका। तुमको नहीं काल की शंका॥

घर-घर में आदर तुम पाते। बिना इजाज़त के घुस जाते॥
कोई जगह न ऐसी छोड़ी। जहाँ न रिश्तेदारी जोड़ी॥


जनता तुम्हें खूब पहचाने। नगरपालिका लोहा माने॥

डरकर तुमको यह वर दिना। जब तक मन में आए जीना॥

मधुर-मधुर जब राग सुनाते। ढोलक, बंसी तक शरमाते॥
भेद-भाव तुमको ना भावे। प्रेम तुम्हारा हर कोई पावे॥

रूप कुरूप न तुमने माना। छोटा बड़ा न तुमने जाना॥
खावन, पहन न सोने देते। दुःख देते सब सुख हर लेते॥

बाद में रोग मिले बहूपीड़ा। जपत निरंतर मच्छर क्रीड़ा॥

जो मच्छर चालीसा गाए। सब दुःख मिले, रोग सब पावे॥

॥ पवन तनय संकट देवन, अमंगल के तुम रूप 

॥ मक्खी, मच्छर, टिड्डे सहित, घर न बसो असुर भूत॥
अब बोलो मच्छर श्रीमान्‌ की...! चल जाने दे.

"इस लेख का उद्देश्य किसी भी प्रकार से किसी भी प्रकार की धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाना नहीं है. यह लेख मात्र मनोरंजन और मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित किया जा रहा है"
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