कुएं की शादी...!

कुएं की शादी

एक बार राजा कृष्णदेव रॉय और तेनालीराम के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया. तेनालीराम को बहुत गुस्सा आया और वह रूठकर वहां से चला गया. जब दस-बारह दिन बीत गए, तो राजा का मन भी उदास हो गया. रजा ने तुरंत सेवकों को तेनालीराम को बुलाने के लिए भेजा. सेवकों ने आस-पास का पूरा क्षेत्र छान मारा लेकिन तेनाली का कहीं कोई अता-पता नहीं चला. जब सभी थक-हारकर बैठ गए तो कृष्णदेव रॉय को एक तरकीब सूझी.
उसने अपने राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी गाँवों में मुनादी करवाई कि, "रजा अपने राजकीय कुएं की शादी करवा रहें हैं, इसलिए गाँव के सभी मुखिया अपने-अपने गाँव के कुओं को लेकर राजधानी पहुँचे. और जो कोई इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा उसे जुर्माने के तौर पर एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ राजकोष में जमा करवानी होंगी."
इस प्रकार की बेढंगी मुनादी सुनकर पुरे राज्य के गाँवों के मुखिया परेशां हो गए. होते भी क्यों नहीं... भला कुँए की भी कभी शादी होती है, अच्छा चलो एक पल के लिए मान लें की शादी होती भी है तो किसी दुसरे गाँव से कुएं को कैसे लाया जा सकता है.

जिस गाँव में तेनालीराम भेष बदलकर रह रहा था, वहां भी यह मुनादी सुने दी. गाँव का मुखिया भी दुसरे अन्य मुखियाओं की तरह हैरान-परेशान हो गया. तेनालीराम समझ गया की महाराज ने उसे खोजने के लिए यह चाल चली है. तेनाली ने उस गाँव के मुखिया को अपने पास बुलाकर कहा, "मुखिया जी, आप चिंता न करें, आपने मुझे अपने गाँव में आश्रय दिया है, इसलिए इस समस्या की घड़ी में मैं चाहता हूँ कि मैं आपकी चिंता का निवारण करूँ और आपके उपकार का चुकाऊं." मुखिया पहले तो बड़ा खुश हुआ लेकिन तेनाली की बातों पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

तेनालीराम ने मुखिया से कहा, "मैं आपको एक तरकीब बताता हूँ, आप आस-पास के सभी गाँवों के मुखियाओं को इकठ्ठा करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें." मुखिया ने सोचा - जुर्माना तो भरना ही है, तो क्यों न एक बार तेनाली की बात मानकर राजधानी चल ही पड़ते हैं. कुछ न हुआ तो कम-से-कम तेनाली की तरकीब तो देखने को मिल ही जाएगी. इसलिए सभी मुखिया राजधानी की ओर निकल पड़े और तेनाली भी उनके साथ हो लिया.
जब वे लोग राजधानी से कुछ दुरी पर पहुँचे तो तेनाली ने सबको रुकने को कहा. और एक व्यक्ति को मुखिया का सन्देश महाराज तक पहुँचाने को कहा. वह व्यक्ति दरबार में पहुंचा और तेनालीराम के बताये हुए शब्दों को दोहराया, "महाराज..! हमारे गाँव के कुएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाल चुके हैं. आप मेहरबानी करके राजकीय कुएं को उनकी अगवानी के लिए बाहर भेजें, ताकि हमारे गाँव के कुएं ससम्मान दरबार के समक्ष हाज़िर हो सकें.

व्यक्ति के ऐसा कहते ही राजा कृष्णदेव रॉय समझ गए कि यह तेनालीराम की ही तरकीब है.

राजा ने झूठ-मुठ का गुस्सा दिखाते हुए पूछा, "सच-सच बताओ कि तुम किसके कहने पर यहाँ आये हो? वह कौन है जिसने तुम्हे इस प्रकार की बुद्धि दी है? व्यक्ति डर गया और बोला, "क्षमा करें महाराज..!, वास्तव में कुछ समय पूर्व हमारे गाँव में एक परदेसी आकर रुका था. जब उसने आपकी मुनादी सुनी तो उसी ने हमें यह तरकीब बताई है."

सारी बात सुनकर राजा स्वयं रथ पर बैठकर राजधानी से बाहर उस स्थान पर गए जहाँ सभी मुखियाओं सहित तेनालीराम ठहरा था और तेनालीराम को ससम्मान दरबार में वापस ले आये.

और हाँ... गाँव वालों को पुरस्कार भी दिया.

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