परियों से भेंट

परियों से भेंट

एक बार विजयनगर के राज दरबार में एक यात्री राजा कृष्णदेव राय से मिलने के लिए आया। पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने यात्री को उनसे मिलने की आज्ञा दे दी। 


यात्री बहुत ही लम्बा व पतला था। उसका सारा शरीर नीला था। वह राजा के सामने सीधा खडा होकर बोला, “महाराज, मैं नीलदेश का निवासी हूँ और मेरा नाम नीलकेतु है। इस समय मैं विश्व-भ्रमण पर निकला हुआ हूँ। अनेक देशों की यात्रा करते हुए मैं यहाँ पहुँचा हूँ। घूमते हुए मैंने अनेक देशों में विजयनगर और आपके न्यायपूर्ण शासन व उदार स्वाभाव के बारे मैं बहुत कुछ सुना। अतः मेरे मन में आपके विजयनगर और आपको देखने व जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई थी। इसीलिए मैं आपसे मिलने व विजयनगर साम्राज्य को देखने की अभिलाषा से यहाँ आया हूँ।”

राजा ने यात्री का स्वागत किया और उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा द्वारा मिले आदर व सत्कार से गदगद होकर यात्री बोला, “महाराज, मैं आपके आतिथ्य से अत्यंत प्रसन्न हूँ, अतः मैं आपको उस स्थान के विषय में बताना चाहता हूँ जहाँ परियां रहती हैं और जिस स्थान के विषय में केवल मुझे ही जानकारी है। मैं आपके सामने अपनी जादुई शक्ति से उन परियों को यहाँ भी बुला सकता हूँ।”

यह सुनकर राजा एकाएक उत्सुक हो गए और बोले, “नीलकेतु जी, मुझे उस स्थान के बारे में जानने की अत्यंत उत्सुकता हो रही है। कृपया मुझे बताएं कि इसके लिए मुझे क्या करना होगा?”

“महाराज, उन परियों को किसी भी ऐसे-वैसे स्थान पर नहीं बुलाया जा सकता और न ही वे किसी भी वक़्त आ सकती हैं। आपके राज्य के भ्रमण के दौरान मैंने एक स्थल देखा था, मेरे विचार में उन्हें बुलवाने और आपको उनसे मिलवाने के लिए वह स्थान पूर्णतया उपयुक्त है। अतः यदि आप उनसे मिलना चाहते हैं तो आपको नगर के बाहर स्थित उस स्थान अर्थात एक तालाब के किनारे मध्यरात्री को अकेले आना होगा। उस समय मैं वहां परियों को नृत्य के लिए बुला सकता हूँ।” नीलकेतु ने उत्तर दिया।

राजा कृष्णदेव राय परियों से मिलने की बात से इतने उत्साहित थे कि उन्होंने बिना कोई विचार किये उसकी बात मान ली। उसी रात मध्यरात्रि में राजा अपने घोड़े पर सवार होकर नगर से बाहर स्थित उस तालाब की ओर चल दिए। वहां पुराने किले से घिरा हुआ एक बहुत बड़ा तालाब था।

राजा के वहां पहुँचने पर नीलकेतु पुराने किले से बाहर निकला और बोला, “स्वागत है महाराज, आपका स्वागत है। मैंने सारी व्यवस्था कर दी है और पहले से ही परियों को यहाँ बुला लिया है। सभी परियां किले के अन्दर हैं और शीघ्र ही आपके लिए नृत्य करेंगी।”

यह सुनकर राजा अत्यंत खुश हो गए। कृष्णदेव राय के मुखमंडल पर यूँ प्रसन्नता देखकर नीलकेतु बोला, "महाराज, मेरे विचार में अब अन्दर चला जाए। आप क्या कहते हैं?”



राजा, नीलकेतु के साथ जाने के लिए घोड़े से उतर गया। जैसे ही वे लोग आगे बढ़े, उन्होंने कुछ ताली की आवाज सुनी। और देखते-ही-देखते विजयनगर की सेना ने नीलकेतु को पकड़कर बेड़ियों से बांध दिया।

“यह सब क्या है और यह हो क्या रहा है?” राजा ने आश्चर्य से पूछा।

तभी तेनालीराम पास के एक पेड़ के पीछे से निकला और बोला, “महाराज, मैं आपको बताता हूँ कि यह सब क्या हो रहा है? यह नीलकेतु, वास्तव में हमारे पड़ोसी राज्य का रक्षामंत्री हैं। किले के अन्दर कोई परियां-वरियाँ नहीं हैं। वास्तव में, इसके देश के सिपाही ही वहां परियों के रूप में छिपे हुए हैं अपने नकली परों में उन्होंने अपने हथियार छिपाए हुए हैं। यह सब आपको घेरकर मारने की योजना थी जिसे हमने अब नाकाम कर दिया है।”


“तेनाली, तुमने एक बार फिर मेरे प्राणों की रक्षा की है इसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ। परन्तु, यह बताओ कि तुम्हें यह सब पता कैसे चला?” राजा बोले।

तेनालीराम ने उत्तर दिया, “महाराज जब यह नीलकेतु दरबार में आया था, तो इसने अपने शरीर को नीले रंग से रंगा हुआ था। परन्तु जब यह राजसभा में आया तो यात्रा के दौरान गर्मी लगने के कारण इसका शरीर पसीने-पसीने हो गया। पसीने के कारण इसके शरीर के कई अंगों पर से नीला रंग हट गया तथा इसके शरीर का वास्तविक रंग दिखाई देने लगा था। मुझे कुछ शंका हुई तो मैंने अपने विशेष गुप्तचरों को इसका पीछा करने के लिए कहा। उन्होंने मुझे सूचित किया कि ये सब यहाँ आपको मारने की योजना बना रहे हैं। तो बस फिर क्या था, हमने इसकी हर हरकत पर विशेष नज़र रखी और नतीजा आपके सामने है।”


राजा कृष्णदेव राय, तेनाली राम की सतर्कता से प्रभावित हुए और उसे पुनः धन्यवाद दिया।

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