राजा कंजूसमल और पण्डित देवशर्मा


राजा कंजूसमल

एक समय की बात है, चंदनपुर का राजा, राजा कंजूसमल, अपने नाम के अनुरूप निहायत ही कंजूस स्वभाव का था। वह अपने दासों से ढेर सारे काम करवाता, किसानों से मनमाफ़िक लगान के रूप में ढेर सारा अनाज वसूलता, सुनारों से तरह-तरह के आभूषण बनवाता पर जब उन सब का मूल्य चुकाने का समय आता तो कुछ भी मनगढ़ंत किस्सा-कहानी बनाकर उन्हें खाली हाथ भिजवा देता था। लोग विवशता के कारण चुप रह जाते। आखिर राजा से भला कौन बहस कर पाता।
राजा के इस प्रकार के आचरण से त्रसत होकर सुनार राजा को नकली आभूषण देने लगे ये सब देखकर अन्य व्यापारी भी राजा को मिलावटी सामान देने लगे किसानों ने भी सड़ा-गला अनाज लगान के रूप में देना प्रारंभ कर दिया। क्योंकि राजा अपने सेवकों को भी कंजूसी से वेतन देता था इसलिए उन्होंने भी कभी इस बात की शिकायत नहीं की

खराब अनाज व मिलावटी चीजों के सेवन से राजा की तबीयत खराब रहने लगी। राजा इतना बीमार पड़ गया की वह बिस्तर से लग गया। राजा ने अपने एक विश्वसनीय मंत्री से कहकर नगर के सबसे प्रसिद्द वैद्य पण्डित देवशर्मा को उपचार हेतु बुलवाया।

राजा के स्वास्थ्य को देखकर पण्डित देवशर्मा ने अपनी सबसे कारगर जड़ी-बूटीयों से एक दवा बनाई और राजा को पीने को दे दी। दो-चार दिनों के इलाज के दौरान ही राजा के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा और कुछ ही हफ़्तों में राजा की तबीयत एकदम ठीक हो गई।


कुछ दिनों बाद जब राजा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया तो देवशर्मा ने राजा से अपने पारिश्रमिक हेतु निवेदन किया। जब राजा ने देखा की देवशर्मा पैसे मांग रहा है तो उसने देवशर्मा से कहा, 'वैद्यजी! इससे पहले की मैं आपको आपका पारिश्रमिक दूँ, मैं चाहता हूँ कि आप मेरी एक बात सुने।'

देवशर्मा ने कहा, 'जी महाराज! कहिये।'

राजा बोला, 'देवशर्मा जी, कल रात्रि मुझे सपने में मेरे दादाश्री ने दर्शन दिए। उन्होंने कहा कि देवशर्मा, अर्थात आपके दादाजी उनके खास वैद्य थे और अपने समय में उन्होंने आपके दादाजी की सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें पेशगी बतौर बहुत सारा धन दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने आपके दादाजी को यह आदेश दिया था कि वह अपने पुत्र अर्थात आपके पिता को यह आदेश दे कि अपने पुत्र अर्थात आपको भी एक वैद्य ही बनाये ताकि वह भी उन्हीं की भांति मेरे पिताश्री के बेटे अर्थात मेरी चिकित्सा अच्छे से करे। अतः तुम वैद्य का कार्य तो कर ही रहे हो और आज आपने मेरा इलाज भी कर दिया। किन्तु इस सेवा का पारिश्रमिक तो मेरे दादाजी ने आपके दादाजी को पहले ही पेशगी बतौर कर दिया है। अतः अब आप ही बताएं की मैं आपको किसलिए पैसे दूँ।'

कंजूसमल की कथा सुनकर देवशर्मा चुप रहा। उसे यकीन हो गया कि कंजूसमल उसके पैसे नहीं देगा इसलिए वह खाली हाथ ही घर लौट आया।

अभी कुछ ही समय बिता था कि राजा की तबीयत फिर से खराब हो गई और एक बार फिर से पण्डित देवशर्मा को उपचार हेतु बुलवाया गया। इस बार देवशर्मा पहले से ही सतर्क था। इसलिए जैसे ही देवशर्मा राजा के पास पहुंचा तो उसने राजा से कहा, ‘हे राजन्! इससे पहले कि मैं आपका उपचार करूँ, मैं चाहता हूँ कि आप मेरी एक बात सुन लें।'

कंजूसमल ने कहा, 'हाँ.. हाँ... वैद्य जी! अवश्य कहें।'

देवशर्मा बोला, 'महाराज! अभी कल ही मुझे सपने में मेरे दादाजी ने बताया कि वे आपके दादाश्री का बहुत सम्मान करते थे। जब आपके दादाश्री ने उन्हें पेशगी बतौर बहुत सारा धन दिया तो मेरे दादाजी ने उस धन से एक बहुत ही कीमती और अद्भुत दवा का निर्माण किया था। उस दवा को लेकर वो राजसभा में गए और आपके दादाश्री से कहा कि हे महाराज! मैं नहीं जानता कि मेरा पोता शायद मेरे जैसा अच्छा वैद्य बन पायेगा या नहीं। इसलिये आपने जो धन दिया था उससे मैंने एक अद्भुत और अत्यंत मूल्यवान दवा बनाई है। वह दवा मेरे दादाजी ने आपके दादाश्री को दी थी ताकि यदि भविष्य में उनका पोता अर्थात आप कभी बीमार पड़ जायें तो उस दवा के सेवन से आप ठीक हो जायेंगे। अतः क्योंकि वह दवा आपके दादाश्री ने ले ली थी इसलिए आप पूर्ण रूप से निश्चिन्त रहें। आप उस दवा का सेवन करें और आपका स्वास्थ्य स्वयं ही ठीक हो जायेगा।’

यह बात सुन राजा की आँखें खुल गयी और उसने देवशर्मा से अपने किये के लिए माफ़ी मांगी। इस घटना के बाद राजा कंजूसमल का कंजूसी भरा व्यव्हार भी रफूचक्कर हो गया।

दोस्तों! यह कहानी मुख्य रूप से श्री भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गई है। हमने मात्र इस कहानी को थोड़ा-सा और मनोरंजक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको हमारा यह प्रयास पसंद आया हो या इस कहानी के सन्दर्भ में कुछ और भी कहना या बताना चाहते हो तो हमें baalpaper@outlook.in पर मेल करें। या आप नीचे दिए गए बॉक्स में अपने विचार कमेन्ट भी कर सकते हैं। हमें अच्छा लगेगा।