गधे और बैल तो ऐसा ही भोजन करते हैं...?

गधे और बैल का भोजन


एक बार की बात है सुंदरनगर राज्य में दो विद्वान योगी रहते थे. उनमें से एक का नाम सीताराम और दूसरे का नाम पारसनाथ था. दोनों ही योगी अपने आप में एक से बढ़कर एक थे. परंतु उनमें एक खोट था. वे दोनों एक दूसरे से अत्यंत ईर्ष्या करते थे. आमने-सामने तो कुछ नहीं कहते पर पीठ पीछे एक-दूसरे की खूब बुराइयां करते थे. अब कोई भी उनको इस बात पर सलाह भी तो नहीं दे सकता था. क्योंकि वे ठहरे ज्ञानी-ध्यानी, भला कौन उन्हें उपदेश देने की हिम्मत करता..? खैर काफी समय तक इसी प्रकार चलता रहा.
इसी दौरान सुंदरनगर में लक्ष्मीप्रसाद नाम के एक महात्मा सेठ हुआ करते थे. जब उन्होंने देखा कि किस प्रकार दो ज्ञानी पुरुष आपस में घृणा करते हैं तो उन्हें बहुत दुख हुआ. क्योंकि जब ज्ञानदाता ही अज्ञानीयों के समान व्यवहार करे तो जो उस ज्ञान को ग्रहण कर रहा है उसका ज्ञान कैसे बढ़ेगा?


एक रोज़ लक्ष्मीप्रसाद ने सीताराम और पारसनाथ दोनों को अपने निवास स्थान पर भोजन के लिए आमंत्रित किया. यद्यपि ये दोनों एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे फिर भी उन्होंने लक्ष्मीप्रसाद का निमंत्रण स्वीकार किया क्योंकि लक्ष्मीप्रसाद उस क्षेत्र में अत्यंत सम्माननीय और धार्मिक व्यक्ति थे. वे समय-समय पर अपने निवास स्थान पर कोई न कोई धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ इत्यादि आयोजित करते रहते थे.

दोनों नियत समय पर लक्ष्मीप्रसाद के घर पहुँचे. और एक-दूसरे को देखते ही मुँह बनाने लगे. लक्ष्मीप्रसाद ने दोनों के आचरण को भांप लिया. उसने दोनों से भोजन से पहले स्नान करने का निवेदन किया. निवेदन स्वीकार करते हुए जब सीताराम नहाने चला गया तो लक्ष्मीप्रसाद पारसनाथ के पास आकर बैठा और बातें करने लगा. वह बोला - महाराज! ऐसा प्रतीत होता है जैसे सीताराम जी पहुँचे हुए विद्वान है? शायद उन्हें अनेक रहस्यमयी बातों का ज्ञान हो. यह सुनकर पारसनाथ की भौँवेँ तन गईं वह बोला - अरे नहीं नहीं सेठजी! इसका तो विद्वता से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. यह तो निरा बैल है... बैल. ढोँगी कहींका...! पता नहीं लोग इसे क्या सोचकर आमंत्रित कर लेते है? अरे इसे विद्वान कहना तो पूर्ण रूप से विद्वानों का अपमान है. कदाचित आप उसे अब से विद्वान कहना छोड़ दें. अभी वे इस प्रकार बातें कर ही रहे थे कि सीताराम स्नानागार से बाहर निकला और उनकी ओर बढ़ा. सीताराम को बाहर आता देख पारसनाथ चुप हो गया. कुछ समय उपरांत लक्ष्मीप्रसाद ने पारसनाथ को स्नान करने का निवेदन किया.

पारसनाथ को स्नानागार में जाता देख लक्ष्मीप्रसाद सीताराम के साथ बैठा और पारसनाथ की प्रशंसा करते हुए बोला - महाराज! मुझे लगता है कि पारसनाथ जी वेदों के बहुत बड़े ज्ञाता है. लक्ष्मीप्रसाद की बात सुनकर मन ही मन क्रोधित होते हुए भी मुख पर मुस्कान बिखेरते हुए सीताराम बोला - ये आप कैसी बात कर रहे हैं सेठजी, वह और विद्वान...!. अवश्य ही आप हमारे साथ विनोद कर रहें हैं. अरे इस मूढ़ को विद्वान कहने से अच्छा है आप किसी गधे को विद्वान कहें. और कदाचित आपने आज तक विद्वान ही नहीं देखे. अगर उसकी तुलना आप विद्वानों से न ही करें तो बेहतर होगा. वह तो निरा गधा है. सीताराम अभी कह ही रहा था कि उसने देखा पारसनाथ स्नान करके वापस आ रहा है. पारसनाथ को आता देख वह भी चुप हो गया.

उन दोनों की बातें सुनकर लक्ष्मीप्रसाद को काफी दुख हुआ. उसने सोचा भी नहीं था कि इतने ज्ञानी होने के उपरांत भी उनका अन्त:मन इतना मलिन होगा. खैर कुछ देर के बाद दोनों को भोजन के लिए बुलाया गया. लक्ष्मीप्रसाद स्वयं उनके लिए भोजन परोसने लगा. उसने दोनों के समक्ष एक-एक थाली रखी. परंतु जब भोजन परोसने की बारी आई तो लक्ष्मीप्रसाद ने एक की थाली में घास और दूसरे की थाली में भूसा रख दिया. सीताराम और पारसनाथ ने जब यह देखा तो अत्यंत हैरान हुए. साथ-ही-साथ लक्ष्मीप्रसाद के इस कृत्य पर उन्हें क्रोध भी आ रहा था. क्रोध के आवेश में आकर दोनों एक स्वर में चिल्लाए - लक्ष्मीप्रसाद जी! यह क्या उद्दंडता है...?

सीताराम - आप हमारा अपमान कर रहे हैं.
पारसनाथ - आपको क्या लगता है, हम पशु हैं...?

उनकी बातें सुनकर लक्ष्मीप्रसाद जी, जो वहीं पास में चेहरे पर धीमी-सी मुस्कान डाले हुए खड़े थे, बोले - क्षमा करें महात्मन्‌! इसमें मेरा कोई दोष नहीं है. कदाचित आप दोनों भूल रहे हैं कि अभी कुछ देर पहले ही तो आप दोनों ने एक-दूसरे को गधा और बैल बताया था. और मेरे विचार में गधे और बैल इसी प्रकार का भोजन ग्रहण करते हैं.

यह सुनकर दोनों के सिर शर्म से झुक गए. दोनों अपने आप पर बहुत शर्मिँदा हुए. उन्होंने लक्ष्मीप्रसाद का धन्यवाद किया. फिर उन्होंने एक-दूसरे से क्षमायाचना की और भविष्य के लिए ईर्ष्या की अग्नि को अपने मन से निकाल फेंकने का प्रण किया.

शिक्षा: जीवन में कभी भी किसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए.
कहानी के लेखक और संपादक : लेखराज ठाकुर
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