वो रहस्य वाली बात... (जापान से)

रहस्यमयी बात

जापान का एक सीधा-सादा किसान अपने खेत में बैठकर जमीन खोदकर उसमें नीले रंग के बीज बो रहा था। वह न इधर देखता था, न उधर। तभी एक आदमी उधर से निकला। उसने थोड़ी देर इतने तन्मय होकर किसान को जमीन खोदते और उसमें बीज बोते देखा तो उत्सुकतावश रुक गया। सड़क से ही आवाज लगाई, 'भैया, नमस्कार, आपका दिन शुभ हो।'
किसान ने उसकी बात का न तो कोई जवाब दिया और न ही उसकी तरफ देखा। उस व्यक्ति ने सोचा शायद इसने सुना ही नहीं होगा, इसलिए वह आदमी फिर से बोला, 'अरे ओ भाई! आज का दिन कितना अच्छा है ना..।
किसान ने फिर भी कोई उत्तर नहीं दिया। वह आदमी भी थोड़ा अड़ियल किस्म का था। इसलिए वह एक बार फिर से बोला, ‘हैलो दोस्त, आखिर तुम अपने बगीचे में क्या बो रहे हो?'
किसान ने उसकी ओर देखा और उस आदमी की ओर अपने मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा करते हुए उसे पास आने को कहा और अपने काम में फिर से ध्यानमग्न हो गया।
वह व्यक्ति सड़क से किसान के पास आया और बोला, ‘दोस्त, तुमने मेरे नमस्कार का उत्तर क्यों नहीं दिया? तुम बोलते क्यों नहीं? किसी अजनबी से तो बड़ा शिष्ट व्यवहार करना चाहिए। समूचा जापान अपने शिष्ट व्यवहार के लिए जाना जाता है।’ अजनबी ने थोड़े शिकायती लहज़े में कहा।
किसान ने उसे एकदम नजदीक बुलाया और फिर उसके कान में धीरे से फुसफुसाया, ‘दोस्त, तुम मुझे मेरी असभ्यता के लिए माफ करना। मेरी ऐसी कोई भावना नहीं थी। वास्तव में मैं अपने बगीचे में सेम के बीज बो रहा हूँ।'

'सेम के बीज..! लेकिन इसमें इतनी रहस्य की क्या बात है? इस मौसम में तो हर कोई सेम के बीज बोता ही है। अलबत्ता कुछ लोग तो गीत गुनगुनाते हुए भी बीज बोते हैं।’ अजनबी ने आश्चर्य से कहा।

'अरे भाई, इतनी जोर से मत बोलो! मैं इन कबूतरों से बहुत परेशान हूं। मैं जो भी बीज बोता हूँ, ये नामाकूल कबूतर उन सबको खा लेते हैं। यदि मैं तुम्हारे नमस्कार का जवाब जोर से बोल कर देता, तो वे सुन लेते और आकर मेरे सारे बीज खा जाते। इसीलिए मैं तुम्हें उत्तर नहीं दे रहा था, समझे।’ किसान ने उसे चुप रहने का रहस्य बताया।

अजनबी ने उस मूर्ख किसान को एक बार घूर कर देखा और मुस्कुराता हुआ चला गया। आखिर वह उससे बोलता भी तो क्या? ऐसी सोच वाले व्यक्ति को समझाने से कोई लाभ भी तो नहीं था।

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