बेताल पच्चीसी - दूसरी कहानी - वास्तविक पति कौन...?

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विक्रम और बेताल

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गतांक से आगे... इसके बाद बेताल ने विक्रम को अगली कहानी कुछ इस तरह सुनाई...!

दूसरी कहानी
वास्तविक पति कौन..?

यमुना के किनारे धर्मस्थान नाम का एक नगर था। गणाधिप नाम का राजा वहाँ राज करता था। उसी नगर में केशव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। केशव शर्मा यमुना नदी के निकट एक कुटिया में रहता था और नदी के तट पर धर्म-कर्म के क्रिया-कलाप करता था। उसके परिवार में वह स्वयं, उसकी पत्नी यशोदा, उसका पुत्र हरी और एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। केशव की पुत्री अत्यंत रूपवती थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो उसके माता-पिता और भाई को चिन्ता होने लगी।

मालती

संयोग की बात थी कि एक दिन जब केशव शर्मा अपने एक यजमान के पुत्र के विवाह में गया था तभी उनके घर में एक ब्राह्मण पुत्र किसी प्रयोजनवश आया। केशव शर्मा का पुत्र हरी भी रोज़ की भान्ति शिक्षा ग्रहण करने हेतु गुरुकुल गया हुआ था। केशव शर्मा की पत्नी यशोदा ने उस युवक के रूप और गुणों को देखकर उससे कहा, "पुत्र! तुम बहुत ही नेक और गुणी प्रतीत होते हो, मैं तुमसे अपनी पुत्री मालती का विवाह कराना चाहती हूँ।" ठीक उसी समय दूसरी ओर केशव शर्मा को भी उसी विवाहोत्सव में एक योग्य युवक मिला और उसने भी उस युवक को यही शब्द कहे। उस युवक को अपनी पुत्री से मिलाने के उद्देश्य से केशव शर्मा उस युवक को अपने साथ अपने घर लेकर आया। लेकिन संयोग की अति तो तब हो गई जब केशव शर्मा के पुत्र हरी ने भी अपने बड़े भाई होने के नाते अपनी बहन के लिए अपने एक मित्र से ठीक उसी दौरान यही बात कही और वह भी उस मित्र को अपनी बहन से मिलाने घर लेकर आया।

केशव शर्मा

थोड़ी ही देर में पिता और पुत्र अपने-अपने युवकों के साथ घर पहुंचे। जब वे घर पहुंचे तो क्या देखते हैं कि वहाँ एक युवक पहले से ही मौजूद है। जब केशव और हरी ने यशोदा से इस बारे में पूछा तो उसने सारा हाल सुना दिया। अब क्या हो? केशव शर्मा, उसका पुत्र हरी और यशोदा सभी सोच में पड़ गए। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केशव शर्मा ने तीनों युवकों को परामर्श दिया कि वे आपस में शांतिपूर्वक इस बात का निर्णय लें कि कौन वास्तव में उसकी पुत्री से विवाह करेगा लेकिन मालती के सौन्दर्य को देखकर कोई भी युवक उससे विवाह न करने का निर्णय नहीं ले रहा था। इस प्रकार थोड़ी ही देर में उनका शांतिपूर्वक वार्तालाप झगड़े में परिवर्तित होने लगा। केशव शर्मा ने उन सबको रोका और घर के भीतर अपनी पत्नी और पुत्र से विचार-विमर्श करने चला गया। जब कोई भी समाधान होता नहीं दिखा तो केशव शर्मा ने सबके समक्ष एक सुझाव रखते हुए कहा, "क्यों न हम महाराज गणाधिप के पास जाएँ? वे जिस युवक से मेरी पुत्री के विवाह को न्यायोचित समझेंगे उसी से उसका विवाह होगा।" सभी इस सुझाव को मान गए

सभी लोग महाराज गणाधिप के दरबार में पहुँचे जहाँ केशव शर्मा ने राजा गणाधिप को सारा वृतांत सुनाया और कहा, "महाराज! अब आप ही निर्णय लें कि आखिर मेरी पुत्री का विवाह किस युवक से हो?" गणाधिप ने निर्णय दिया, "क्योंकि केशव शर्मा परिवार का प्रमुख सदस्य है इसलिए धर्म के अनुसार उसकी पत्नी और उसके पुत्र को उसके सभी निर्णयों में उसका साथ देना चाहिए। इसलिए केशव शर्मा की पुत्री का विवाह उसी युवक से होना चाहिए जिसे केशव शर्मा ने वचन दिया था। क्योंकि किसी भी समाज या राज्य में उसके प्रशासक द्वारा लिया गया निर्णय ही सर्वोपरि होता है और धर्म के अनुसार भी यही न्यायोचित होगा।" सभी लोगों को गणाधिप के निर्णय का सम्मान करना पड़ा और सभी लोग वहाँ से चले गए। दुर्भाग्यवश महल से कुछ ही दुरी पर मालती को साँप ने काट लिया और वह उसी क्षण मर गयी।

अपनी पुत्री की अकाल मृत्यु से आहत केशव शर्मा ने दु:खी होकर उसका अन्तिम-संस्कार किया। अन्तिम संस्कार के उपरान्त तीनों युवकों में से जिसे केशव शर्मा ने चुना था, ने मालती की शेष बचीं अस्तियाँ लीं और फकीर बनकर जंगल में चला गया। दूसरे, जिसे यशोदा ने चुना था, ने उसकी राख ली और उसकी गठरी बांधकर वहीं झोपड़ी बनाकर रहने लगा। तीसरे और अन्तिम युवक ने योगी का चोगा पहना और देश-देश घुमने चला गया।

कुछ वर्षों बाद... एक दिन योगी युवक घूमते-घूमते नृपसेनपूर नगर में पहुँचा और वहाँ एक ब्राह्मण के घर भोजन करने बैठ गया। जैसे ही घर की ब्राह्मणी भोजन परोसने आयी तो उसके छोटे बेटे ने उस ब्राह्मणी का आँचल पकड़ लिया। ब्राह्मणी ने अपने पुत्र को आँचल छोड़ने को कहा लेकिन उसके बेटे ने उसकी बात नहीं मानी। ब्राह्मणी ने खुद भी बहुत प्रयास किये लेकिन उससे अपना आँचल छूटते नहीं बन रहा था। ब्राह्मणी को बहुत गुस्सा आया। उसने अपने बेटे को खूब झिड़का, मारा-पीटा, फिर भी वह नहीं माना। आखिर में ब्राह्मणी ने अपने बेटे को उठाया और पास ही जलते हुए चूल्हें में पटक दिया। लड़का जलकर स्वाहा हो गया। योगी युवक बिना भोजन किये ही उठ खड़ा हुआ और वहाँ से जाने लगा। घरवालों ने बहुतेरा कहा, पर वह भोजन करने के लिए राजी नहीं हुआ। वह बोला, "जिस घर में ऐसी स्त्री हो जिसका व्यव्हार एक राक्षसी के समान हो, वहाँ मैं भोजन नहीं कर सकता।"

इतना सुनना था कि ब्राह्मणी का पति उठा और एक कमरे में जाकर संजीवनी विद्या की पोथी ले आया। उसने पुस्तक में से एक मन्त्र पढ़ा और चमत्कारिक रूप से थोड़ी देर पहले जलकर राख हो चुका उनका पुत्र फिर से जीवित होकर उनके सामने खिलखिलाने लगा। यह देखकर योगी युवक ने सोचा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस युवती को फिर से ज़िन्दा कर सकता हूँ। इसके बाद उसने भोजन किया और कोई बहाना बनाकर एक रात्रि के लिए वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो योगी युवक उठा और चुपचाप से वह पोथी लेकर वहाँ से चला गया।

जब वह उस स्थान पर पहुँचा जहाँ मालती को जलाया गया था तो उसने देखा कि शेष दोनों युवक भी वहीं थे और बैठे बातें कर रहे हैं। योगी युवक ने कहा कि मुझे इस प्रकार कि संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी है जिसका एक मन्त्र पढ़ने से मालती को ज़िन्दा किया जा सकता है। शेष दोनों युवक बहुत खुश हुए और उन दोनों ने मालती की संचित की हुई अस्तियाँ और राख निकाली। योगी युवक ने जैसे ही पुस्तक में से वह मंत्र पढ़ा तो वर्षों पहले मरी हुई मालती एक बार फिर से सजीव उनके सामने खड़ी हो गई। जैसे ही युवती जीवित हुई तीनों युवक पुनः उसे अपनी पत्नी के रूप में पाने के लिए झगड़ा करने लगे

इतना कहकर बेताल थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और फिर बोला, “राजन्! कहानी तो यहीं समाप्त हो गई लेकिन अब तुम बताओ कि वास्तव में मालती के पति होने का अधिकार किस युवक का है? क्या अब भी उन्हें गणाधिप के निर्णयानुसार ही कार्य करना चाहिए?”

विक्रम ने जवाब दिया, “मालती के पति होने का अधिकार सबसे अधिक उसी का है जिसके पास मालती की राख थी और जो वहीं पर कुटिया बनाकर रहा था।इस पर बेताल ने पूछा, “भला क्यों..?”

वास्तविक पति कौन...?

विक्रम बोला, “क्योंकि शास्त्रों के अनुसार स्त्री की अस्तियों के संचय का अधिकार पुत्र को होता है इस प्रकार जिसने मालती की अस्तियाँ रखीं, वह एक तरह से उसके पुत्र के समान हुआ। अगर बात करें योगी युवक की तो उसने मालती को फिर से जीवित करके जीवन देने वाले का कार्य किया है। और जीवन देने वाला एक पिता के समान होता है। इस कारण से वे दोनों उसके पति होने के अधिकारी नहीं थे। अंत में जिसने मालती के मृत शरीर की भस्म रखी और वहीं पर कुटिया बनाकर रमा रहा, वही उस का पति बन सकता है। और अंत में जहाँ तक सवाल है गणाधिप के न्याय का तो उनका न्याय पूर्णतया उचित था। किन्तु वह न्याय केवल तभी तक मान्य था जब तक मालती जीवित थी। उसके पुनः जीवित होने की दशा में उस पर पूर्व जन्म के निर्णय को लागू नहीं किया जा सकता

विक्रम का जवाब सुनकर बेताल बोला, "राजन्! आपने एकदम सही उत्तर दिया है।" और इतना कहकर एक बार फिर वह पेड़ पर जाकर उल्टा लटक गया। राजा विक्रम को एक बार फिर लौटना पड़ा।

जब वह बेताल लेकर चला तो बेताल ने एक और कहानी सुनायी। जो इस प्रकार थी...

शेष अगले अंक में...
कहानी के कुछ अंश और पात्रों के नाम और घटनाक्रम लेखक द्वारा स्वयं कल्पना के आधार पर निर्मित किये गए हैं और वास्तविक कहानी से भिन्न है
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