थोड़ा और... थोड़ा और..!

थोड़ा और... थोड़ा और का लालच 

एक बार नरोत्तम दास नाम के व्यक्ति के घर एक संन्यासी आया। क्योंकि ऐसा पहली बार था कि नरोत्तम के घर कोई सन्यासी आया इसलिए उसने सन्यासी से एक रात्रि के लिए उसके घर में मेहमान बनकर रहने का निवेदन किया। नरोत्तम के बार-बार आग्रह पर सन्यासी आख़िरकार उसके घर में रहने को मान गया। सन्यासी और नरोत्तम ने रात भर बैठकर बातें की। सन्यासी, नरोत्तम की मेहमाननवाज़ी से बहुत ख़ुश हुआ।
सुबह जब सन्यासी जाने को हुआ तो उसने नरोत्तम को बुलाया और उससे कहा, “तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो। मैं कुछ समय पहले साइबेरिया की यात्रा पर गया था। मैंने देखा कि वहाँ ज़मीन इतनी सस्ती है कि तुम्हारे लिए तो जैसे वह मुफ़्त के समान ही होगी। यदि तुम एक धनवान और बड़े कृषक बनना चाहते हो तो तुम अपनी यहाँ की ज़मीन आदि बेचकर साइबेरिया चले जाओ। अपनी यहाँ की ज़मीन को बेचने से प्राप्त धन से तुम वहाँ हजारों एकड़ ज़मीन ख़रीद सकते हो और जितनी अधिक ज़मीन उतनी अधिक खेती और मनचाही फ़सल..! देखते-ही-देखते 2-4 वर्षों में ही तुम एक धनी कृषक बन जाओगे।"

नरोत्तम सन्यासी की सारी बातों को बड़े ही गौर से सुन रहा था। सन्यासी की बात समाप्त होते-होते उसे स्वयं के धनी होने के स्वप्न भी आने लग गए। एक तरह से कहें तो उसके मन में लालच आ गया था। उसने सन्यासी को धन्यवाद सहित विदा किया।

अगले ही दिन नरोत्तम अपना सब कुछ बेच-बाचकर साइबेरिया चल पड़ा। दो-एक सप्ताह की यात्रा के बाद आख़िरकार वह साइबेरिया पहुँच गया। एक-दो दिन वह स्थानीय भूपतियों से ज़मीन के क्रय-विक्रय सम्बन्धी नियमों की जाँच-पड़ताल करने लगा। जब वह ज़मीन के ख़रीदने सम्बन्धी सभी नियमों से परिचित हो गया तो वह नियमानुसार उस क्षेत्र के मुखिया के पास गया और कृषि हेतु ज़मीन खरीदने की इच्छा ज़ाहिर की। मुखिया ने नरोत्तम के लालच को भांप लिया। उसने कहा, “ठीक है, तुम ज़मीन ख़रीद सकते हो। आज रात तुम आराम कर लो, कल सुबह तुम 5000 मोहरें गांव के राजस्व अधिकारी के पास जमा करा देना और सूर्य उदय होते ही ज़मीन देखने चल पड़ना। तुम्हें तो पता ही है, हमारे यहाँ ज़मीन खरीदने के नियम के अनुसार ख़रीदार को 5000 मोहरें चुकाने होते हैं और सूर्य उदय होने से लेकर अस्त होने तक ख़रीदार जितनी ज़मीन नाप लेता है वह उसकी हो जाती है।" नरोत्तम ने कहा, "जी हाँ, मुझे नियम पता है। इसलिए मैं कल सुबह ही राजस्व अधिकारी के पास 5000 मोहरें जमा करवा दूंगा। अब मैं विश्राम कर लेता हूँ।"

उस रात नरोत्तम रात-भर तो सो न सका। आख़िर सोता भी कैसे..? वह जल्दी ही अमीर आदमी जो बनने वाला था। इलाक़े की सारी बढ़िया-बढ़िया ज़मीन उसने पहले ही देखकर रखी थी। इसलिए रात-भर बस यही सोचता रहा कि कहाँ-कहाँ की और कौन-कौन सी ज़मीन नापनी है। आज की रात नरोत्तम को बहुत लम्बी लग रही थी। आख़िर इंतज़ार की घड़िया लम्बी जो होती हैं।

सुबह हुई और चिड़ियों के चहकने से पहले ही नरोत्तम उठ कर नहा-धोकर तैयार हो गया। उजाला होते-होते वह राजस्व अधिकारी के पास गया और निर्धारित मोहरें जमा करवाकर पूर्वनिर्धारित स्थान पर ज़मीन नापने पहुँच गया। उसका कारनामा देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था। वैसे इस तरह के आयोजन वहाँ आए-दिन देखने को मिलते थे। सुबह का सूरज उगा और एक निर्धारित जगह पर एक खूंटी गाड़ कर नरोत्तम ने भागना शुरू किया। अपने साथ दोपहर के खाने के लिए रोटी-सब्ज़ी और पानी भी ले लिया था। रास्ते में भूख लगे या प्यास लगे तो सोचा था कि चलते-चलते खाना भी खा लूँगा और पानी भी पी लूँगा, बस रुकना नहीं है। जितना हो सके दौड़ते-दौड़ते ही ज़मीन को नापना है, चलने से तो आधी ही जमीन नाप पाऊँगा और दौड़ने से दुगनी..!

उसने सोचा था कि ठीक बारह बजे लौटना शुरू करूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते वापस उसी जगह पहुँच जाऊँ। बारह बज गए और नरोत्तम मीलों तक चल चुका था, मगर वो कहावत है कि लालच का कोई अंत नहीं, तो उसने एक पल के लिए तो सोचा कि अब बारह बज गए मुझे लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, फिर और उपजाऊ जमीन… थोड़ी और... थोड़ी और घेर लूँ के फेर में वह चलता रहा। उसने सोचा कि मैं वापसी में तेज़ दौड़ लगाऊंगा और फिर आज ही की तो बात है, फिर तो पूरी ज़िंदगी आराम ही करना है।

चलते-चलते अब एक बज गया था, लेकिन अभी भी नरोत्तम का मन लौटने को नहीं हो रहा था। क्योंकि आगे उसे और अच्छी ज़मीन नज़र आ रही थी। लेकिन लौटना तो था ही, क्योंकि समय बहुत हो चुका था। उसने लौटना शुरू किया। और ज़मीन.. और ज़मीन के चक्कर में उसने दोपहर का भोजन भी नहीं किया था और कोई अच्छी ज़मीन रह न जाए ये सोचकर वह दो घड़ी पानी पीने भी नहीं रुका। अब खाने-पीने का वक़्त नहीं रह गया था। अब उसका शरीर जवाब दे रहा था। अपनी थकान और अपना बोझ कम करने के लिए उसने अपने साथ लाई हुई खाने की पोटली और पानी का बर्तन भी फेंक दिया। अब वो सिर्फ दौड़ ही रहा था। जब थकान और बढ़ने लगी तो उसने अपनी टोपी और कोट भी उतार फेंक। नरोत्तम ने सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत अब बची ही कहाँ थी। वह पागलों की तरह दौड़ा। अपने सारे दाव-पेच लगाए पर अभी भी वह बहुत दूर था। अब उसे अपने फैसले पर गुस्सा भी आने लगा था।

दूसरी ओर वक़्त भला किसके लिए रुका है जो आज नरोत्तम के लिए रुकता। सूरज अब अपने दिन के आख़िरी पड़ाव पर था। दूर क्षितिज पर ज़मीन को स्पर्श सा कर लिया था उसने। इधर नरोत्तम पसीने शाम की ठण्डी हवाओं के बीच भी पसीने से तर-बतर, जोर-जोर से हाँफते हुए बस दौड़े जा रहा था। अब वह इतनी दूर पहुँच चुका था जहाँ से उसे लोग दिखाई देने लगे थे। गाँव के कुछ लोग तो उसे आवाज भी दे रहे थे, "दौड़ो.. और दौड़ो..! तुम ये कर सकते हो।" पर नरोत्तम का शरीर अब किसी भी प्रकार के प्रोत्साहन का उत्तर नहीं दे सकता था। पर उसके मन में अभी भी उम्मीद थी कि वह खूंटी तक पहुँच जाएगा।

थोड़ी देर बाद अब सूरज डूबने लगा और इधर नरोत्तम को भी सिर्फ पाँच-सात गज की दूरी ही रह गई थी। वह ज़मीन पर गिर गया। कुछ लोग अभी भी उसका हौंसला बढ़ा रहे थे। नरोत्तम अब घिसटते हुए खूंटी तक पहुँचने की कोशिश करने लगा। खूंटी वाले स्थान पर सूरज अस्त हो चुका था लेकिन पास की एक पहाड़ी की चोटी अभी भी हल्की चमक रही थी।

आख़िरकार नरोत्तम ने खूंटी को छू ही लिया। अब वो सारी ज़मीन उसकी हो गई थी। लोग तालियां बजने लगे। मुखिया ने भी ज़मीन पर लेटे हुए नरोत्तम को बधाई दी। सूरज अब पूरी तरह अस्त हो चुका था। बहुत से लोग नरोत्तम की बातें करते हुए घर की ओर चल दिए थे। इधर नरोत्तम अभी भी ज़मीन पर ही पड़ा हुआ था। मुखिया के कहने पर दो-तीन लोग नरोत्तम को उठाने के लिए आगे बढ़े। उन्होंने उसके शरीर को हिलाया-डुलाया, और उसे उठने के लिए कहा। लेकिन नरोत्तम ने कोई उत्तर नहीं दिया। भला देता भी कैसे..? वह मर चूका था। लगातार दौड़ते रहने की वजह से उसके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था और उसके फेफड़ों में उतनी हवा नहीं पहुँच रही थी जितनी उनको चाहिए थी। इसलिए जैसे ही वह रुका तो उसे दिल का दौरा पड़ा और वह मर गया।

मुखिया बोले, "थोड़ा और... थोड़ा और.. के लालच ने इसे भी मार दिया। इस तरह के पागल लोग यहाँ आते-जाते रहेंगे। जाओ इसका भी अंतिम संस्कार कर दो।"

नरोत्तम का अंतिम संस्कार कर दिया गया। सारे गांव में कहा गया कि वह अपने परिवार को लाने के लिए गया है। लेकिन सिर्फ़ कुछ ही लोग जानते थे वो अब कभी नहीं आने वाला था।

शिक्षा: लालच बुरी बला है।
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