गधे पर भरोसा

गधे पर भरोसा

एक बार की बात है सुबह-सुबह का समय था और मुल्ला नसीरुद्दीन साहब अभी नींद से उठकर हाथ-मुंह धोकर कहवे(चाय) का आनंद उठाने बैठे ही थे कि मुल्ला जी के एक पड़ोसी ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी. अब एक तो सुबह का समय और मुल्ला जी कहवे की चुस्कियों से ताज़गी बटोरने में मग्न थे और ऊपर से दरवाज़े की खट-खट.. खट-खट. मुल्ला जी का चाय पीने का सारा सुरूर ही टूट गया. उन्हें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर भी चेहरे पर झूठ-मूठ की मुस्कुराहट लिए वो दरवाज़ा खोलने के लिए खड़े हुए.

जैसे ही मुल्ला साहब ने दरवाज़ा खोला तो सामने एक व्यक्ति हाथ जोड़े निवेदन की मुद्रा में खड़ा होकर उनकी तरफ़ खड़ा था. मुल्ला ने पूछा, 'क्यों भाई, क्या हुआ? क्या चाहिए..?'
व्यक्ति बोला, 'मुल्ला जी, यदि आपको कोई कष्ट ना हो तो क्या आप अपना गधा कुछ दिनों के लिए मुझे दे सकते हैं? अगर दे दें तो आपका बड़ा उपकार होगा.
मुल्ला नसीरुद्दीन कभी भी अपने गधे को किसी को नहीं देते थे. उनका गधा एक तरह से उनके जीवन का साथी था. इसलिए जब उस व्यक्ति ने
गधा ले जाने की बात की तो उन्हें उस व्यक्ति पर एक बार फिर से गुस्सा आया. उन्होंने उस व्यक्ति से पीछा छुड़ाने के लिए और अपने गुस्से को एक बार फिर दबोचते हुए कहा, 'माफ़ करना भाई, दरअसल मैंने उसे किसी और व्यक्ति को दे दिया है.' जैसे ही मुल्ला साहब ऐसा कहा तो घर के पिछवाड़े में खड़ा उनका गधा रेंकने लगा, जैसे मानो वो मुल्ला साहब को अपने वहां मौजूद होने का सबूत दे रहा हो.
जब उस व्यक्ति ने गधे की आवाज़ सुनी तो उसने कहा, 'मुल्ला जी, यह तो मुझे आपके गधे का रेंकना लग रहा है. मगर आप तो कह रहे हैं कि...
अब मुल्ला साहब का गुस्सा अपनी परवान चढ़ चुका था. पहले तो सिर्फ उस आदमी का गुस्सा था लेकिन अब तो गधे ने भी मुल्ला जी को झूठा ठहरा दिया था.
जैसे ही वह आदमी यह सब कह रहा था मुल्ला ने उस आदमी की बात को पूरा होने से पहले ही उसके मुंह पर दरवाज़ा बंद करते हुए कहा, 'हम्म...! जिस आदमी को मेरी बात से ज्यादा मेरे गधे के रेंकने पर ज्यादा यकीन हो, कम-से-कम उसे तो मैं अपना गधा बिलकुल नहीं दे सकता'.
बेचारा आदमी इतना सा मुंह लेकर वहां से चला गया और मुल्ला साहब ने पिछवाड़े जाकर अपनी बेईज़ती करवाने के लिए गधे को भी दो-चार बेंत रसीद कर दिए.

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