बेताल पच्चीसी - पहली कहानी - पाप का भागी कौन...?

गतांक से आगे...
विक्रम और बेताल
पहली कहानी - पाप का भागी कौन...?

बाल-पेपर | बेताल पच्चीसी कथा संग्रह | पहली कहानी

एक समय की बात है काशी नगरी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसका एक बीटा था जिसका नाम वज्रमुकुट था। एक दिन राजकुमार वज्रमुकुट राज्य के दीवान के बेटे सुर्जन सिंह, जो उसका अच्छा मित्र भी था को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल गया। दोनों मित्र काफ़ी देर तक जंगल में घूमते रहे लेकिन कोई भी शिकार हाथ नहीं लगा। घूमते-घूमते उन्हें जंगल के बीचों-बीच एक तालाब मिला। तालाब के पानी में बहुत सारे कमल खिले हुए थे और आस-पास हंस किलोल कर रहे थे। तालाब के किनारों पर बड़े-बड़े घने वृक्ष थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे।

दोनों मित्र वहाँ रुक गये और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर तालाब के साथ वाली छोटी सी छोटी पर बने महादेव के मन्दिर चले गये। उन्होंने अपने घोड़ों को वहीं मन्दिर के बाहर प्रांगण में बाँध दिया और स्वयं मन्दिर में दर्शन करने चले गए। जैसे ही वे दोनों महादेव के दर्शन करके बाहर आये तो क्या देखते हैं... कि तालाब के किनारे राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई हुई है। सुर्जन सिंह तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से रहा न गया। वह आगे बढ़ गया। राजकुमारी ने उसे अपनी ओर आते हुए देखा और वह उस पर मोहित हो गई। राजकुमार भी उसकी तरफ़ देखता रहा। थोड़ी देर निहारने के बाद राजकुमारी ने अपने जूड़े में लगाया हुआ कमल का फूल निकाला, उसे पहले कान से लगाया, फिर दाँत से कुतरा, फिर पैर के नीचे दबाया और आखिर में अपनी छाती से लगाकर अपनी सभी सहेलियों और दासियों के साथ वहां से चली गयी।

उनके वहां से चले जाने पर राजकुमार वज्रमुकुट निराश हो गया और वापस अपने मित्र के पास लौटा। उसने सारा वृतांत अपने मित्र को सुना दिया और बोला, “मित्र सुर्जन! इस राजकुमारी ने मेरा मन मोह लिया है। अब मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। किन्तु मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न निवास। अब तुम ही बताओ मुझे वह कैसे मिलेगी?”

सुर्जन सिंह ने कहा, “राजकुमार, आप इतना चिन्तित क्यों हो रहे हैं। जिस प्रकार का आपने वर्णन किया है उससे स्पष्ट है कि वह अपना सब-कुछ बताकर गयी है।

वज्रमुकुट ने आश्चर्य से पूछा, “सब-कुछ बताकर गई है...! परन्तु कब और कैसे?”

सुर्जन सिंह बोला, “आपने कहा कि उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक राज्य की रहने वाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका अर्थ था कि मैं दंतबाट राजा की बेटी हूँ। फिर पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और अंत में छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।

इतना सुनना था कि राजकुमार वज्रमुकुट खुशी से फूल उठा। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था कि सुर्जन सिंह ने इन इशारों का अर्थ भला कैसे निकाला था। वज्रमुकुट बोला, “मित्र! तुमने मुझे खुश कर दिया है। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो चलो अब मुझे कर्नाटक देश ले चलो। मैं जल्द-से-जल्द राजकुमारी पद्मावती से मिलना चाहता हूँ।

इतना कहकर दोनों मित्र वहाँ से चल पड़े। घूमते-फिरते, सैर-सपाटा करते हुए दोनों मित्र आख़िरकार कई दिनों की यात्रा के बाद वहाँ पहुँचे। जब वे दोनों राजा दंतबाट के महल के पास पहुँचे तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती हुई मिली। उसके पास पहुँचकर दोनों अपने घोड़ों से उतर गए और बोले, “अम्मा, हम सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे से आ रहा है। हमें रहने के लिए भाड़े पर जगह चाहिए थी। क्या आप हमें अपने घर में कुछ समय के लिए ठहरा सकती हैं।

उनकी शक्ल-सूरत और चाल-ढाल देखकर और बातें सुनकर बुढ़िया के मन से यह संशय तो समाप्त हो गया कि ये दोनों कोई चोर-उचक्के या ठग हैं। वह बोली, “ठीक है बेटा, इसे अपना ही घर समझो और जब तक जी में आए, रहो।” दोनों बहुत खुश हुए और अपना थोड़ा बहुत सामान, जो साथ में था उसे घर के एक कमरे में रख दिया। सुर्जन सिंह ने बुढ़िया की आयु और स्थिति को देखते हुए उत्सुकतावश पूछा, “अम्मा, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है और तुम्हारी गुज़र कैसे होती है?”

बुढ़िया ने जवाब दिया, “बेटा, मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है। पूर्व में मैं राजा की बेटी पह्मावती की धाय थी और उनकी देखभाल का सारा ज़िम्मा मुझपर था। अब क्योंकि बूढ़ी हो गई हूँ और शरीर में इतनी जान नहीं है कि बहुत काम कर सकूँ, इसलिए घर में ही रहती हूँ। राजा जी गुज़र-बसर के लिए खाना-पीना और कपड़े दे देते हैं। पर अभी भी मैं दिन में एक-आध बार राजकुमारी जी को देखने महल में जाती रहती हूँ।

थोड़ी दूर बैठा राजकुमार यह सब सुनकर खुश हो गया। उसने बुढ़िया को एक सोने की मोहर देते हुए कहा, “अम्मा, यह लो अग्रिम भाड़ा और सुनो जब कल तुम महल में राजकुमारी से मिलने जाओ तो राजकुमारी से कहना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।

बुढ़िया को कुछ समझ नहीं आया पर जब वह अगले दिन राजमहल गयी तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। जैसे ही राजकुमारी ने सन्देश सुना, सुनते ही गुस्सा होकर अपने हाथों में चन्दन लगाकर बुढ़िया के गाल पर तमाचा मारते हुए कहा, “निकल जाओ इस राजमहल से और दोबारा फिर कभी यहाँ कदम मत रखना।

बुढ़िया ने घर आकर सारा हाल राजकुमार को कह सुनाया। वज्रमुकुट हक्का-बक्का रह गया। राजकुमार की दशा देखकर सुर्जन सिंह ने कहा, “मित्र, आप घबरायें नहीं, राजकुमारी की बातों को समझें। उन्होंने अपनी दसों उँगलियाँ सफ़ेद चन्दन में डुबाकर, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज़ चाँदनी के हैं। उनके बीतने के बाद ही मैं अंधेरी रात में मिलूँगी।

दस दिन बीत गए। राजकुमार के कहने पर बुढ़िया ने एक बार फिर राजकुमारी को ख़बर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, “भाग यहाँ से।

बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। सुर्जन सिंह ने फिर समझाया, “इसमें हैरान होने की क्या बात है? राजकुमारी का सन्देश है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। इसलिए तीन दिन और ठहरो।

तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर अपने कक्ष की पश्चिमी खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर सुर्जन सिंह बोला, “मित्र, राजकुमारी ने आज रात को तुम्हें उस खिड़की के रास्ते से मिलने के लिए बुलाया है।इतना सुनना था कि मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। रात हुई और राजकुमार ने बुढ़िया का लिबाज़ पहना, इत्र लगाया और सुरक्षा हेतु हथियार भी चढ़ा दिए। रात्रि के दो पहर बीतने पर वह महल में घुसा और खिड़की में से होकर राजकुमारी के कक्ष में पहुँच गया। राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गयी।

भीतर का दृश्य देखकर राजकुमार की आँखें खुल गयीं। एक-से-बढ़कर-एक चीजें थीं। राजकुमार ने पूरी रात राजकुमारी के साथ बिताई। जैसे ही दिन निकलने को आया राजकुमारी ने राजकुमार को कमरे में ही छिपा दिया और जैसे ही रात हुई फिर बाहर निकाल लिया। इसी प्रकार कई दिन बीत गये। एक दिन अचानक से राजकुमार को अपने मित्र सुर्जन सिंह की याद आयी। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा। राजकुमार को उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। राजकुमार बोला, “वह मेरा प्रिय मित्र है और वह बहुत ही चतुर है। आज केवल और केवल उसी की होशियारी से तुम मुझे मिल पाई हो अन्यथा मैंने तो आस ही छोड़ दी थी।

राजकुमारी ने कहा, “मैं तुम्हारे मित्र के लिए स्वादिष्ट पकवान बनवाती हूँ। तुम जाना और उसे खिला-पिलाकर और तसल्ली देकर लौट आना।राजकुमार ने वैसा ही किया। वह पकवान लेकर गया और अपने मित्र के पास पहुंचा। उन दोनों को मिले हुए लगभग एक महिना हो गया था। राजकुमार ने जैसे ही अपने मित्र को देखा तो सबसे पहले उसे गले से लगा लिया और फिर अपना सारा हाल सुनाकर कहा, “मित्र मैंने राजकुमारी को तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दीं, तभी तो उसने खुश होकर विशेष रूप से तुम्हारे लिए यह भोजन बनाकर भेजा है।

सुर्जन सिंह सोच में पड़ गया। उसने कहा, “मित्र! आपने यह ठीक नहीं किया। राजकुमारी समझ गयी कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है।” यह कहकर सुर्जन सिंह ने थाली में से एक लड्डू उठाया और दूर खड़े कुत्ते के आगे डाल दिया। लड्डू को खाते ही कुत्ता मर गया।

वज्रमुकुट को बहुत बुरा लगा। उसने कहा, “ऐसी स्त्री से भगवान बचाए, अब मैं उसके पास कभी नहीं जाऊँगा। चलो हम काशी लौट चलते हैं।

सुर्जन सिंह बोला, “ठहरो मित्र, अब हमें कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे अपने साथ घर ले जाएँ। मित्र, आप ऐसा करना कि आज रात को तुम राजकुमारी के पास चले जाना, रात्रि में जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।

राजकुमार ने ऐसा ही किया। राजकुमार के आने पर सुर्जन सिंह उसे अपने साथ ले गया। उसने स्वयं एक योगी का भेस बनाया और एक मरघट में बैठ गया। फिर उसने राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने ले जाकर बाज़ार में बेच आओ। यदि कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहाँ ले आना।

राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि ये मेरे गुरु ने मुझे दिये हैं। गुरु को भी पकड़वा लिया गया। सब राजा के सामने पहुँचे।

राजा ने पूछा, “योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?”

योगी बने सुर्जन ने कहा, “महाराज, मैं शमशान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि एक डाकिनी आयी, जो कि देखने में एकदम राजकुमारी पद्मावती लग रही थीं। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल का निशान बना दिया। यदि आप चाहें तो राजकुमारी की बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान जाँच सकते हैं।

इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी ने देखा, तो वहां था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, “महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?”

योगी ने जवाब दिया, “हे राजन्! यदि कोई ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहने वाला, कोई खोटा काम कर दे तो शास्त्रों के अनुसार उसे देश-निकाला दे देना चाहिए।यह सुनकर राजा ने चुपचाप से राजकुमारी पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार वज्रमुकुट और सुर्जन सिंह तो ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेला पाकर वे दोनों उसे अपने साथ काशी नगर में लौट आये और आनंद से रहने लगे।

कहानी पूर्ण करने के पश्चात् बेताल बोला, “अब बताओ राजन्, वास्तव में पाप का भागी कौन है?”

राजा विक्रम ने कहा, “पाप के भागीदार तो निश्चित रूप से राजा ही है। क्योंकि सुर्जन सिंह ने तो अपने स्वामी राजकुमार वज्रमुकुट के मनोरथ को सिद्ध करने के काम में सहायता की जो कि उसे करनी चाहिए थी क्योंकि यह उसका राजधर्म था। कोतवाल ने राजा के आदेश की अनुपालना की और राजकुमारी को जंगल में छोड़ दिया। केवल राजा दंतबाट ही हैं जिन्होंने बिना सोच-विचार के निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पुत्री को देश निकाला दे दिया जो कि उन्हें तब देना चाहिए था जब वे सभी तथ्यों को जानने का प्रयास करते और यदि वास्तव में पद्मावती डाकिनी होती तो उसे देश निकाला देते। किन्तु केवल एक साधू के कहने और अपनी पुत्री का पक्ष सुने बिना ही उन्होंने निर्णय ले लिया। इसलिए पाप के वास्तविक भागी राजा दंतबाट हैं।

राजा विक्रम का उत्तर सुनकर बेताल बोला, “राजन्, बिलकुल सही जवाब, लेकिन मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि यदि तुम कुछ बोले तो मैं फिर से उसी सिरस के पेड़ पर चला जाऊंगा जहाँ से तुम मुझे लाये थे।इसलिए मैं चला...। इतना कहकर बेताल फिर उसी पेड़ पर जाकर लट गया।

राजा वापस गया और बेताल को उसी सिरस के पेड़ से फिर से अपने कन्धे पर उठाकर उसी शमशान की ओर चल दिया।

बेताल बोला, “हे राजन्, मेरी मानो तो मुझे ले जाने की जिद्द छोड़ दो पर अगर तुम अपनी जिद्द पर अड़े रहना चाहते हो तो भला मैं क्या कर सकता हूँ।" विक्रम कुछ नहीं बोला। बेताल ने फिर कहा, "अच्छा चलो मैं तुम्हें एक और कहानी सुनाता हूँ, सुनो...!

दूसरी कहानी अगले अंक में...
विशेष सुचना: कहानी के कुछ अंश बाल-पेपर© के लेखक मंडल द्वारा स्वयं सम्पादित किये गए हैं ताकि कहानी का प्रवाह तार्किक (logical) लगे। यह संपादन पूर्णरूपेण काल्पनिक है तथा मूल कथा के स्वरूप को बरकरार रखते हुए थोड़ा-सा भिन्न है
पको बेताल-पच्चीसी की पहली कथा ज़रूर पसंद आई होगी।
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